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क्रोध कहां अपना भला करता है। आवेश का आवेक बाद में आंखों में आंसू भर देता है। क्रोधी बन हम छोटी बातों को बड़ी तवज्जो दे बैठते हैं। गुस्से का गुबार पछतावे और आत्मग्लानि की अगन छोड़ जाता है। इंतहा तब जब आपका गुस्सा परिवार में निकले। कल्पना करिये तो आप वो देख सकेंगे जो मैं चाहता हूं।
माँ मुझे जान से प्यारी है। सबको ही होती है अमूमन…। कम ही होंगे जो अपनी माँ से ऐस भाव न रखते हों। इसके बावजूद आप माँ को रुला देंगे। माँ के आगे भी आपका घमंड गुस्सा बन फूट पड़ेगा। बात बढ़ती देख माँ हाथ जोड़ लेगी पर आप तो गुस्से में होंगे। सोच खोकर आपका दिमाग गुस्से से गर्म होगा। माँ का प्यार भूल आप खुद को आक्रामक होता पा घर से निकल लेंगे।
माँ परेशान है। बेटा नवरात्र व्रत है। गुस्से में उससे रूठकर वो कहीं निकला है। उधर, बेटा घर से निकलते वक्त माँ की भीगी पलकों को याद कर आंखें भिगोयेगा। वो माँ ही होगी जो आपको हमेशा माफ़ कर देगी। आप गुस्से में अपना सामान तबाह करने पर आमादा होंगे तब माँ ही रोकेगी और सबतो…..।
खैर, अब आपकी पलकें अकेले में नम हैं।
क्या माँ को रुलाकर आपको नहीं गम है।
जानता हूं गुस्सा आपको भी आता होगा
अक्सर बाद में मन बेहद पछताता होगा।
जीवन में दुखद अफ़साने कम नहीं हैं।
क्या माँ को रुलाकर आपको गम नहीं है।
छलक के आंसू तब मन हल्का कर देंगे
माँ माफ कर देगी, हम गुस्सा नहीं करेंगे।
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