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रोटी-बेटी के रिश्ते में नफरत के बीज

जिंदगी का फलसफा
जिंदगी का फलसफा
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नेपाली दिलों में भारतीयों के लिए बढ़ती नफरत के बीच प्यार अभी बाकी है। दरकते रिश्तों में चाह भी बाकी है। कहीं हिकारत आपका मन नेपाल से उचाट देती लगती है तभी किसी नेपाली का प्रेम व्यवहार आपका हृदय भर देता है। रोटी-बेटी के नाते में गुंथे दोनों देशों का मिजाज ही कुछ ऐसा है कि ‘लाठी मारे काई न फाटे’।
आमतौर पर पहाड़ की दुकानें महिलाएं ही चलाती हैं। एक गरीब की बेटी कठिन पहाड़ पर 20 रुपये का खीरा मेहमान मान खिला देती है तो दूसरी ओर बड़ी दुकान पर 600 के बदले देवी 1500 लेती है। एक जगह अपनापन और मानवता तो दूसरी जगह सारे भारतीय अभद्रता पाते हैं। एक ओर भारत की सेना के लिए सम्मान का अहसास तो दूसरी ओर चीन से बढ़ती नजदीकी महसूस होने लगती है। खास बात है कि दूसरी जगह माओवादी आंदोलन के समय से ही ये नफरत के बीज संभाले हुए है। राजा बदला, सरकारें बदलीं पर यहां माहौल न बदला। कभी राजशाही के खिलाफ आंदोलन यहां भारतीयों को आतंकित करता था अब लोकतंत्र में नफरत से उसी बिगड़े रिश्ते की बू आती है। हालांकि, माओवादी प्रचंड प्रधानमंत्री बन रिश्ते सुधारने आये और हमारे राष्ट्रपति को संविधान के उत्सव पर मुख्य अतिथि के रूप में बुला रहे हैं। उम्मीद करते हैं कि इससे अशांति के लंबे दौर से गुजरे यहां के लोगों में भारत और भारतीयों के प्रति अकारण नफरत कम होगी। माओवादी नेतृत्व का बदला नजरिया ईमानदार रहा तो यहां भी सोच में बदलाव लाएगा। इसके लिए प्रचंड को इन इलाकों के विकास पर भी ध्यान देना होगा। युवकों का पलायन रोककर उन्हें रोजगार देना होगा। भारत मित्र राष्ट्र की सड़कें बनाएगा, प्रचंड को अपनी यात्रा की इस उपलब्धि को लोगों तक पहुंचाना होगा। ये अहसास दिलाना होगा कि भारतीय मित्र हैं और प्रवास के दौरान उनकी सुरक्षा नेपाल की जिम्मेदारी है। ऐसा हुआ तो जरूर बढ़ती नफरत के बीच बाकी प्यार इस पर भारी पड़ जाएगा।
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नेपाल से लौटकर1475017431994-2071504724

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