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गांधीगीरि पर भरोसा रख ‘मुन्‍ना’

जिंदगी का फलसफा
जिंदगी का फलसफा
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अपना ‘मुन्‍ना’ टेंशन में है। जेल की कोठरी में आखिर कौन उसे जादू की झप्‍पी देगा। बेजार दिलों को इसी के दम पर बाग-बाग करने वाला खुद ही इसके खातिर तरसेगा। मुन्‍ना ने जिंदगी के उस स्‍याह पहलू की सजा पाई जिसने पूरे देश को हिला कर रख डाला। 12 मार्च 1993 को मुंबई में 12 धमाके। पता चला कि संजू बाबा ने भारी मात्रा में विस्‍फोटक अपने घर में ही रखे थे। लोगों ने भी मान लिया कि नायक नहीं खलनायक है ये। आदर्शवादी बाप ने खुद पुलिस को उसके आने की खबर दी थी। विदेश से शूटिंग निपटाकर लौटते ही उसे दबोच लिया
गया था। यह सितारा जब कैद हुआ तो लगा कि अब इसकी चमक गुजरे जमाने की बात
बनकर रह जाएगी। और तो और बॉलीवुड के कई दिग्‍गजों ने भी ऐसा ही समझा। उस
वक्‍त अपना मुन्‍ना नशे की दलदल में फंसा गुमराह नौजवान था। ठोकर जिंदगी तबाह करने
वाली थी। जिंदगी में उतार के इस दौर ने सचमुच इस सितारे को हिलाकर रख दिया।
लेकिन एक वो वक्‍त था और एक आज का दिन। तब उसपर आरोप लगे थे और अब सब साबित है।
मगर खलनायक ने छवि तोड़कर खालिस नायक वाली इमेज मजबूत कर डाली है। बॉलीवुड भी उसके
साथ खड़ा है। अपार जनसमूह का प्‍यार भी उसके पास है। ऐसा हो भी क्‍यों न, आखिर हमें
यही सिखाया गया है कि प्रायश्‍िचत के आंसू हर पाप धो देते हैं। बड़े दिल वाले हम भारतीय
भावनाओं का बड़ा सम्‍मान करते हैं। अपने बापू ने भी तो हमें यही बताया।
बात पर आते हैं, इस भूचाल के बीच संजू ने बेहद करीने से जिंदगी फिर से संवारने में कामयाबी पाई। गलती के अहसास के बाद उसने
न सिर्फ एक अच्‍छे नागरिक का दायित्‍व निभाते हुए समाज सेवा के क्षेत्र में कदम बढ़ाया
बल्कि कॅरियर को भी चमकाया। बैडमैन ने झंझावतों के इस दौर में कुछ ऐसा काम किया कि
उसकी यादें लोगों के जेहन में खूबसूरत होती गईं। आज वो अपनी जिंदगी के स्‍याह पहलू को
इतिहास साबित कर चुका है। न्‍याय पालिका पर पूरा विश्‍वास जताते हुए सब फैसले का
सम्‍मान कर रहे हैं, मगर मुन्‍ना के जेल जाने के अहसास से हर कोई आहत भी हैं।
जेल में अच्‍छे व्‍यवहार पर रिहाई
कहा जा रहा है कि मुन्‍ना को जेल में अच्‍छे व्‍यवहार पर जल्‍द रिहा किया जा सकता है।
लेकिन एक बड़ा सवाल है कि क्‍या सिर्फ जेल में ही किया गया अच्‍छा आचरण महत्‍व रखता
है। किसी व्‍यक्ति ने जमानत पर आकर यदि बेपटरी हुई जिंदगी को संवारते हुए सबके दिल में
घर करने का काम किया हो तो उसके लिए कानून की किताब में कुछ क्‍यों नहीं है। मजबूत
आदर्शों वाले पिता की विरासत संभाल रहे मुन्‍ना के पास अब पहले से मजबूत हौसला है। लोगों
के प्‍यार की पूंजी भी उसके पास है। एक अभिभावक सुधांशु श्रीवास्‍तव कहते हैं कि संजय दत्‍त
के मामले में जो फैसला आया, उसका पूरा सम्‍मान करता हूं। मगर इस मामले में एक मानवीय
पहलू यह भी है कि सुनील दत्‍त का नाम समाजसेवा और राजनीति के क्षेत्र में बेहद प्रतिष्ठित
नामों में शुमार है। उन्‍होंने मुंबई बम कांड के बाद स्‍वयं बेटे के देश आने की जानकारी देते हुए
उसे पुलिस को सौंपा था। बेटे और आदर्श के बीच में कभी भी कोई समझौता नहीं किया। नतीजा
रहा कि बिगड़े बेटे को आत्‍मबल मिला। पिता के आदर्शों से प्रेरित होकर उसने अतीत को धो
डाला। विश्‍वास है कि अब पिता की आत्‍मा ने बेटे के अपराध को भुला दिया होगा। जमानत
के बाद अच्‍छे सामाजिक व्‍यवहार को भी माफी देने के लिए मजबूत आधार माना जाना
चाहिए। ऐसा हो तो कई भटके अपनी जिंदगी को नई दिशा दे सकते हैं। अब इस सुधरे बेटे को अगर माफी मिले तो देश के कई अभिभावक सुनील जैसे आदर्श निभाने के लिए आगे आएंगे।
मार्कंडेय काटजू के बोल जन की आवाज
प्रेस परिषद के अध्‍यक्ष मार्कंडेय काटजू ने संजय दत्‍त को सुनाई गई सजा के बाद उसके लिए
माफी की जो बात कही, देश की बहुंसख्‍यक आबादी उससे इतर नहीं सोचती। लोग मानते हैं कि
उसके अच्‍छे सा‍माजिक आचरण को लेकर उसे माफी दी जा सकती थी। पूरी फिल्‍म इंड्रस्‍टी
इस मुश्किल वक्‍त में भावनात्‍मक तौर पर उसके साथ है। अपने मुन्‍ना ने वाकई अपनी
गांधीगीरि से लोगों का दिल जो जीत लिया है। बस मुन्‍ना तूं हिम्‍मत न हारना,
गांधीगीरि पर भरोसा रख मुन्‍ना …सब ठीक हो जाएगा। अपने मुन्‍ना भाई की जिंदगी के
इस उतार चढ़ाव और गिरकर संभलने को देखते हुए कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं…
दुख ने ही अवसर दिया, जीवन को समझने के लिए
हर ठोकर इक संदेश है, गिरते को संभलने के लिए।।

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