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…यहां जिंदगी अभिशाप है।

जिंदगी का फलसफा
जिंदगी का फलसफा
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लीजिए दीदार करिए, यहां जिंदगी अभिशाप है।
हर पल नरक की यातना और सांस लेना पाप है।।
शहर की सभ्यता पर दाग वो काला बड़ा है
अंजान बैठे हाकिम, उनके लबों पर ताला पड़ा है।
एक तरफ गंदगी, वहीं बगल में मौत का एक ढेर है
बीच में बेघर का घरौंदा, उफ! अंधेर ही अंधेर है।।
स्वस्थ समाज का बिंब ये अस्पताल में आबाद है।
विकास के दावे के बीच ये इस देश का संताप है।।
चार बच्चों संग महंगू यहां काटता दिन रात अपने
उस पर जीवन बोझ जैसा, मर गए हैं उसके सपने
प्रतिक्षण जीवन में त्रासदी है, बाप वो लाचार है।
सघन जीवाणु क्षेत्र में बेटों से जताता प्यार है।
खुद भी मरियल हो गया है लाल भी बीमार है।
देह पर मांस बाकी नहीं बस दिख रही खाल है।
क्यों हुई है ऐसी हालत, व्यवस्था पर सवाल है।
योजनाओं की नदी में ये परिवार क्यों बदहाल है?

बायोवेस्ट के ढेर और दूसरी ओर सामुदायिक शौचालय। बीच में सात आठ फुट के घेरे के ऊपर लगी छत। इसी परित्यक्त सरकारी संपत्ति में एक परिवार जिंदगी जीने की जद्दोजहद करता दिखा। वह भी तब जब गरीबों के आवास के नाम पर हर साल लाखों करोड़ों रुपए पानी की तरह से बहाए जाते हैं। स्वस्थ समाज के दावों की पोल खोलता हुआ यह नजारा जिला अस्पताल के कैंपस में दिखा, तो उसने जेहन में खलबली मचा दी।

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