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‘सफर’

जिंदगी का फलसफा
जिंदगी का फलसफा
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वो जनता है मेरा मुकाम-मंजिल
उसे पाने को कर रहा हूँ सफर
ऊँची नीची और थोड़ी सी मुश्किल
पर ठाना है की नापुन्गा ये डगर

इस राह पर उदासी और तन्हाई है
पार करके पाउँगा सपनो का नगर

संघर्ष बिना लक्ष्य किसने पाया है
कर्म से ही होती है प्रभु की नजर

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