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…मैंने देखा जिंदगी को आज कुछ नजदीक से

जिंदगी का फलसफा
जिंदगी का फलसफा
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मैंने देखा जिंदगी को आज कुछ नजदीक से
लाडले का पेट भरने की जुगत थी भीख से
थी जुगत हाँ भीख ममता वहाँ लाचार थी
हर राहगीर से कर रही रोटी की गुहार थी
रोता मुन्ना गोद में, आँखें थी डबडब अश्रु से
लाडले का पेट भरने की जुगत थी भीख से
थी जुगत हाँ भीख एक हाथ से विकलांग थी
उस अपाहिज को थोड़ी मदद की दरकार थी
पर आह उसकी बेअसर, शब्द भी थे शांत से
लाडले का पेट भरने की जुगत थी भीख से
थी जुगत हाँ भीख से इंसानियत बेजार थी
सबसे बस उसको मिली दुत्कार ही दुत्कार थी
बेटे की बस फ़िक्र थी, शिकवा न था समाज से
लाडले का पेट भरने की जुगत थी भीख से
मैंने देखा जिंदगी को आज कुछ नजदीक से
लाडले का पेट भरने की जुगत थी भीख से…!

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