जिंदगी का फलसफा
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क्या सदन पर गिद्ध
मंडराकर डराते हैं तुम्हें
क्यों न नभ से परिंदे
अपनी अब परवाज बदलें
तख़्त बदलें ताज बदलें
और ये अंदाज बदलें
है घड़ी वो आ गई
बदलाव की वसुधा बही
दे वोट करलो आचमन
आओ ये समाज बदलें
जाग जाओ बदल दो
आज तुम तस्वीर को
बस वोट की आहुति से
इस मुल्क की तकदीर बदलें
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