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…बचपन

जिंदगी का फलसफा
जिंदगी का फलसफा
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पैंसठ साल के आजाद भारत में
मैंने बचपन गुलाम देखा
पेंसिल नहीं, हाथ में चिरकुट थामे
पोंछे का करते काम देखा
बचपन को बिखरा कूड़े में
बोरा लिए खुलेआम देखा
पांच उंगली छह गिलासें
ये तमाशा भी आम देखा
बन गया उपनाम छोटका
भूल जाते नाम देखा

बिकता बचपन था डरा

रोते हुए शरेआम देखा
–आशुतोष मिश्र आशुतोष मिश्र

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