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…मीलों लंबी उदासी है

जिंदगी का फलसफा
जिंदगी का फलसफा
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आँगन की मुंडेर पर कौवे को देख
मेरे आने की कयास लगाते होंगे
दूर होने पर याद आते हैं अपने
हम भी अपनों को याद आते होंगे
लालसा के खेतों में हर सुबह हरियाली
ओस की चादर में लिपटी आती होगी
निरौनी करने वाली औरतों की टोली
अब भी मीठे सुर में गाती होगी
दिन भर की भागदौड़ से थककर
साथी सब कौड़े पर जा बैठे होंगे
बातचीत हंसी मजाक और नोकझोक
अंत में सब ठहाकों पर रुकते होंगे
खेत खलिहान बगीचों के बीच कभी
अपने अफसाने भी छिडते होंगे
बस इन यादों में अक्सर फंसकर
मेरी आँखे डबडब हो जाती हैं
सैकड़ों मील दूर हुआ जबसे
तबसे ही मीलों लंबी उदासी है

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